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श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
द्वादश शतकम्
माधुर्यसागर श्रीराधा जिसके रस में अति मत्त हो कर अपने नटवर प्रियतम के साथ विचित्र नाट्यरंग करती है, अपनी प्रेयसी की विग्रह-छटा का दर्शन करके जहाँ प्रियतम पुलकित होते हैं और जहाँ सखीगण चित्रवत् परिवेष्टन किये रहती हैं, उस श्री वृन्दाटवि को मैं ध्यान करता हूँ।।72।।
श्रीराधा के कपालों पर कस्तूरी द्वारा अति सुचित्र रेखा अंकित हो रही है, देवाधीश इन्द्रादि की रमणियों की भी शिरोमणि रूप वह श्रीराधा अपने प्रियतम के साथ, जिसकी माधुर्यराशि के अधीर होकर इधर उधर भ्रमण करती हैं, उसी श्रीवृन्दाटवी का मैं ध्यान करता हूँ।।73।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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