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श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
द्वादश शतकम्
अपने अन्तर्गत ‘अहं-मम’-रूप दृढ़ ग्रन्थियों का छेदन करके अति सम्भ्रम से नेत्र बन्द करते हुए मूर्ख मनुष्य भी सर्वोत्तम वेदों से भी गोपनीय इस श्रीवृन्दावन में प्रवेश करते हैं, इसमें और किसी विचार की आवश्यकता नहीं है।।47।।
हे अबुद्धगण! तुम महानन्द रस सागर के क्रीड़ा सुख को त्याग कर दुःख सागर में क्यों गिर रहे हो? और क्यों इस श्रीवृन्दावन को छोड़ कर अति असाध्य साधनों में जुटे हुए हो?।।48।।
हाय! आप जैसे महापुरुषगण भी अपने स्वार्थ (की अप्राप्ति) के विषय में खेद क्यों करते हैं? स्वच्छन्द रूप से जहाँ सर्वार्थ साधन प्राप्त हैं, ऐसे श्रीवृन्दावन को क्यों नहीं देखते।।49।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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