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श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
दशमं शतकम्
प्रकृति के अन्तर्गत द्वैत वस्तुओं का विशेष रूप से दर्शन करके फिर परम उज्ज्वल विस्तृत ज्योतिस्वरूप एक ब्रह्मपदार्थ की ओर दृष्टि जाती है, उसके परे परम महानन्द विस्तृत ऐश ज्योति का दर्शन होता है एवं उससे भी ऊपर परमोज्ज्वल रसमय कृष्ण-ज्योति विराजमान है।।100।।
उसके बीच यह श्रीवृन्दावन है- यहाँ महाश्चर्य सुषमा मण्डित वयस, रूपा, उदारता आदि से उन्मत मदन-तृष्णैक स्वभाव, अति महानन्द घन-विग्रह महागौरश्याम-युगल का महाभाव-प्रकाशक दास्य-भाव से भजन कर।।101।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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