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श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
दशमं शतकम्
कोई-कोई असंख्य विद्युत तरंगों की तरह चमक रहा है और कोई-कोई दिव्य स्फटिक मणि की महास्वच्छ किरणें इधर-उधर विकीर्ण कर रहा है कोई-कोई नवीन प्रवाल से भी अधिक सुललित तेजोमय नवांकुरों से सुशोभित हैं, कोई-कोई अनन्त गलित स्वर्ण वर्ण तथा दूसरा कोई-कोई हीरों से भी अधिक चमकीला है।।80।।
कोई-कोई स्फुटित दिव्य स्थल पद्म की कांति धारण कर रहा है और कोई-कोई नीलपद्मवत दीप्ति मण्डित है, कोई शुभ्र वर्ण की भाँति कांति युक्त है, कोई कुकुमवर्ण है कोई मरकत मणि तुल्य, कोई कोई अति उज्ज्वल दीप्ति युक्त हैं, कोई सुन्दर गुलाब समूह की मनोहर कांति युक्त है और कोई जवाकुसुम के समान शोभित हो रहे हैं।।81।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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