विषय सूची
श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
दशमं शतकम्
श्रीमद्वृन्दावन में वृद्धिशील तृष्णा से क्रीड़ा परायण, एक प्राण, अति उन्मत्त कामात्मक, रसघन श्रीयुगलकिशोर में स्वर्णकमल एवं नीलकमल के गर्भवत अति गौर एवं नील कांति के प्रकाश का मैं ध्यान करता हूँ।।64।।
श्रीवृन्दावन, श्रीवृन्दावन के प्राण-स्वरूप गौर-श्याम युगल किशोर, उनकी जीवन-स्वरूप सखीवृन्द, जो केवल परम रस तथा प्रीति को ही जानती हैं, एवं वहाँ उनकी आश्चर्यमय मधुर वस्तुएं, इनमें से कोई भी मुझ जैसे अति अपराधी की उपेक्षा नहीं करेगा, यदि एक बार भी श्रीवृन्दावन के साथ मेरा कोई भी लेशमात्र सम्बन्ध हो जाये।।65।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रमांक | पाठ का नाम | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज