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श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
दशमं शतकम्
समस्त सज्जन मुझ पर कृपा करें, चाहे शिक्षा के लिए दण्ड ही दें, वात्सल्य भाव से मेरी पालना करें, चाहे कल्याणकार मेरे भावी मंगलनिमित्त मुझे टुकडे-2 कर डालें, मैं अपनी मन्द बुद्धि को अबोध-बालक की भाँति जानते हुए भी इस स्थान को त्याग न करके कब अत्यन्त असीम परमानन्द स्वरूप इस श्रीवृन्दावन-धाम में वास करूँगा?।।34।।
अकिंचन होकर श्रीराधा-कृष्ण के गुणानुवाद को गान करते करते कब मैं अश्रुधारा प्रवाह से श्रीवृन्दावन स्थली को पंकिल करूँगा?।।35।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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