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श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
नवमं शतकम्
वैदग्धी आदि से अधिक असीम-ललित दिव्य रूपमयी नित्यकिशोरी सखी-मण्डली को स्मरण करके फिर नित्यकिशोरी दासियों का स्मरण कर, वे नाना आश्चर्यमय आकृति धारण करने वाली हैं, अद्भुत मनोहर कला-वर्णादि के भेद से परम सुन्दरी हैं, दिव्य अलंकार वस्त्रादि से सुसज्जिता हैं, तथा अपने प्रियतम श्रीयुगलकिशोर के भाव में ही एकमात्र परिपूर्णा हैं।।103।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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