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श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
व्रजविभूति श्रीश्यामदास
‘श्रीश्यामलाल हकीम’
लीलाप्रवेश
नगर के प्रसिद्ध फिजीशियन एवं सर्जन चिकित्सकों के साथ-साथ उनके पौत्र डाॅ. नीलकृष्ण ने घर पर ही एक अच्छे अस्पताल से अधिक सेवा-निष्ठाभाव से चिकित्सा सेवाऐं प्रदान कीं। स्वास्थ्य में गिरावट होती रही। दिनांक 5 नवम्बर दोपहर को शान्त भाव में विश्राम कर रहे थे, उन्हें देखने आये अपने एक मित्र से मैंने कहा कि सो रहे हैं। 5-6 मिनट बाद बोले, “मैं सो नहीं रहा हूँ, तुम्हारे पास कलम-कागज है - मैं बोलता हूँ - लिखो तो” - उन्होंने पद रचना की और उसे मैंने लिपिबद्ध किया। रात्रि में शैया पर ही वृन्दावन दिग्दर्शिका का विमोचन किया। उसके पश्चात् 6, 7, 8 नवम्बर को लगभग शांत रहे जैसे लीला-चिन्तन में एकाग्र चित्त हों। 9 नवम्बर 2005 को सांय 4 बजे शरीर के संकेत को देखते हुए सारी कृत्रिम नलियां हटा दी गयीं और परिवारी जनों ने भगवन्नाम संकीर्तन प्रारंभ किया। 4 से 7 बजे तक उच्च संकीर्तन चलता रहा। उस समय शरीर लगभग समाप्त हो गया। चित्त तो पहले से ही शांत था। केवल शांत श्वास चलते रहे। धीरे-धीरे संकीर्तन चलता रहा। दूर-पास से आपके सभी बेटियाँ-दामाद, पुत्र-बहुएँ, नाती-पोते लगभग 30-35 परिवारी-जन उनके समीप उपस्थित थे। रात्रि लगभग 11-20 पर उनके श्वास की गति धीमी हो गयी, उन्हें श्रृंगारवट से लायी हुई ब्रजरज बिछाकर उनके निजी कक्ष में भूमि पर लिटाया गया। गंगा जल से शरीर की शुद्धि की गयी। उनके अंगों पर वैष्णव-पद्धति अनुसार ‘द्वादश तिलक’ लगाया गया। अति उच्च स्वर से ‘महामन्त्र’ का संकीर्तन, निताई गौर हरिबोल, जय श्री राधे की नाम ध्वनि 12 बजे तक चली। रात्रि लगभग 11-50 पर उन्होंने अन्तिम श्वांस ली और गोपाष्टमी के दिन 9 नवम्बर 2005 को प्रिया प्रियतम की निकुंज लीला में प्रविष्ट हो गये। अक्षय नवमी, 10 नवम्बर 2005 को श्री धाम वृन्दावन में यमुना तट पर उनका पार्थिक शरीर अग्नि को समर्पित कर दिया गया। उनके श्री चरणों में हमारी एवं आपकी सच्ची श्रद्धांजलि यही है कि हम एवं आप धर्म-प्रचार हेतु उनके ग्रन्थ प्रकाशन के क्रम को अबाध गति से संचालित रखें एवं श्री हरिनाम मासिक पत्र का प्रकाशन नियमित रूप से चलता रहे। हमारा दृढ़ विश्वास है कि ऐसा ही होगा। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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