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श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
नवमं शतकम्
जो श्रीनारायण की ब्रह्माख्य-प्रकाश मूर्त्ति को हृदय में धारण करते हैं, वे इस जगत में पूज्य हैं, जो किसी भगवन्मूर्त्ति की अर्चना करते हैं, वे भगवन के प्रियात्मा हैं, जो श्रीकृष्णचन्द्र का अनेक अनुभावों से भजन करते हैं, उनके समान कोई नहीं है मेरा चित्त तो किन्तु उन्होंने चुना लिया है जो रसिकराज श्रीवृन्दावन का कभी त्याग नहीं करते।।74।।
श्रीवृन्दावन की भूमि को जो साधारण भूमि जानता है, जहाँ के जल को साधारण जल, वृक्ष लताओं को सामान्य वृक्षलता, ज्योत्सनादि को साधारण ज्योति, विहंग-पक्षी तथा यहाँ के मनुष्यों को जो साधारण विहंगादि तथा साधारण मनुष्य जानता है, श्रीकृष्ण समस्त दैत्यों को मारने वाले हैं इतना मात्र ही जो श्रीकृष्ण को जानता है, उसके साथ तर्क करना व्यर्थ है, किन्तु श्रीवृन्दावन में मेरी कुछ दिव्यानुभूति हो-मेरी प्रार्थना है।।75।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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