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श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
नवमं शतकम्
अपरिसीम आनन्दायक नाना रत्नमय स्थलों से, अत्यद्भुत क्रीड़ास्थलियों की कोमलता से, असीम कुंजों की मनोहरता से नित्य उड्डीयमान पराग से तथा रस-प्रवाह से महासुन्दर यह श्रीवृन्दावन-सांद्रानन्द महारस द्वारा ईश्वर सहित समस्त जगत को ही विवश कर रहा है।।50।।
यह श्रीवृन्दावन कालिन्दी पर कलहंस, सारस तथा मनोहर कारण्डवादि विहंगवृन्दों से एवं आन्यान्य अश्चर्यमय पक्षियों से कोलाहलित है, मत्त-भंवरों की गुञ्जार से मुखरित है, सदा प्रफुल्लित, कह्लार, कमल, दिव्य-दिव्य विचित्र उत्पलों से शोभित पुलिनों के सौंदर्य और मणिबद्ध तटों से प्रकाशित हो रहा है।।51।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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