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श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
नवमं शतकम्
प्रत्येक अंग की उज्ज्वल-स्वण-गौर स्निग्ध अतीव-ज्योति से दिशाओं को जो आच्छादन कर रही है, एवं श्रीवृन्दावन में रूप शोभा की शेष सीमा है वह किशोरी किसी श्याम-आत्मा की चोरी करके विराजमान है।।38।।
हाय! श्रीवृन्दावन के कुंजों में सुवर्णकमलरूप दो मुकुल (रत्न) और एकपूर्णचन्द्र (वदन) धारण करने वाली, तथा मध्यदेश में अति कृश होने से अतीव कांति प्रसारित करते हुए एक स्वर्णलतिका (श्रीराधा जी) किसी एक दिव्य-उन्मदरस श्याम तमाल (श्रीश्यामसुन्दर) को आलिंगन कर रही हैं।।39।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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