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श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
अष्टमं शतकम्
श्रीश्यामसुन्दर के स्कन्ध पर रोमांचित वाम भुजलता रख रही हैं, दक्षिण श्रीकरकमल में लीला-कमल घुमा रही हैं।।72।।
मार्ग में दासीगण अपने-अपने अंचल से उनको वीजना कर रहीं हैं, एवं ताम्बूल अप्रण कर रही हैं और वह स्वयं भी अपने हाथों से प्रियतम को भोजन करा रही हैं।।73।।
कोई-कोई दासी प्रेमपूर्वक रत्नश्रृंगार में रखे हुए कर्पूरादि सुगंधित सुस्वाद अमृतमय शीतल जल को पान करा रही है।।74।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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