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श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
सप्तमं शतकम्
अतः निज प्रार्णश्वरी श्रीराधिका को सुमहाभाव-भक्ति से नित्य ही अनुसरण कर, श्रीराधा शुद्ध आस्वादनीय भावरसाकृति हैं।।89।।
वह सकल नूतन गोपी-मण्डली की शिरोमणि है, सर्व लक्ष्ण सम्पन्ना एवं सर्वा लक्ष्ण सम्पन्ना एवं सर्वांग सुन्दरी है।।90।।
निज-निज ईश्वर सहित निखिल जगन्मण्डली की वह मूर्च्छकारिणी एवं आश्चर्यरूप लावण्यवती हैं, मोहन करने वाली लक्ष्मी, पार्वती तथा रति आदि श्रेष्ठ श्रेष्ठ रूपवती स्त्रियों को भी वह अपने नखप्रान्त-सौन्दर्य-प्रवाह में बहा देने वाली हैं, वह तप्त कांचन-सुस्निग्ध कांतियुक्त हैं।।91-92।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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