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श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
सप्तमं शतकम्
उससे परे परमाश्चर्यमय ईश्वर-ज्योति की चिन्ता कर, वह अति आस्वादनीय एवं निर्मल महानन्दघन समुद्र स्वरूप है।।59।।
वह महा सुविस्तीर्णतम, परम महा उज्ज्वलतम, महाद्भुत हैं एवं घनसन्निविष्ट लोक समूह भी उसकी स्तुति करते हैं।।60।।
उसके परे उससे भी अधिक आाश्चर्यजनक ज्योति का अनुस्मरण कर, वह कृष्ण वर्ण, महा स्वच्छतम एवं पारावार विहीन है।।61।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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