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श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
सप्तमं शतकम्
प्रणय-माधुरी की धारा प्रवाहित करने वाली कालिन्दी के द्वारा शोभित, सुख-चन्द्रिका-समुद्र की वृद्धि करने वाले प्रफुल्लित लतावृक्षादिकों से वेष्टित, कपोत, शुक-सारिका, कोकिला तथा मोरों से अलंकृत इधर उधर भ्रमणशील भ्रमरों की झंकार से निनादित श्रीधामवृन्दावन की जय हो।।50।।
अति परमानन्द सुघन महाज्योत्स्नारूप विस्तारकारी, महामाधुर्यराशि के परमसार द्वारा मानों निर्मित, प्रेम-समूह के परिपाक में ही मानों नव-नव आश्चर्य-कुसुसमादिकयुक्त वृक्षों से शोभित सुन्दर तुलसीवनों-युक्त श्रीवृन्दावन का स्मरण कर।।51।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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