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श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
व्रजविभूति श्रीश्यामदास
‘श्रीश्यामलाल हकीम’
दीक्षा
श्री चैतन्य सम्प्रदाय की महान् विभूति श्री मन्नित्यानन्द-प्रभुवंशावतंस श्रृंगार वटस्थ परम भागवत पूज्य चरण श्री देवकी नन्दन जी गोस्वामी महाराज से कृपाशक्ति-दीक्षा प्राप्त कर श्री चैतन्य-सिद्धान्त साहित्य का आपको परिचय हुआ तो आप चमत्कृत हो उठे। श्री गुरुदेव एवं विद्वद्जन की कृपा प्राप्त कर आपने श्री चैतन्यानुयायी गोस्वामिगण के साहित्य का गहन अध्ययन-आस्वादन कर उसे हिन्दी भाषा-भाषी साधकों के हित उपलब्ध कराने का बीड़ा उठाया। कलियुग में जबकि असत्य आचरण, दूषित वातावरण, भयंकर असभ्य, संस्कृति-नाशक टेलीविजन कार्यक्रमों का बोलबाला है, ऐसे में सच्चे सन्तों तक पहुँचना बहुत मुश्किल है- अतः सत् शास्त्र-सन्त वचनामृत ही जीव मात्र का सहज कल्याण करने का एक मात्र अनुकूल साधन है। दीक्षा ग्रहण के तुरन्त पश्चात् श्री गुरुकृपा से आपमें कवित्व शक्ति जाग्रत हो उठी और श्री प्रियाप्रियतम की प्रेरणा से आप श्री भगवन्नाम-गुण-लीलापरक काव्य रचनाएँ करने लगे। श्री भक्तभाव संग्रह नामक ग्रन्थ में ‘ललितविहारिणि’, ‘श्याम’ एवं ‘श्यामदास’ उपनाम से आपकी बहुत सी रचनाएँ प्रकाशित हुई हैं। परिवारधार्मिक परिवेश में रहते हुए आपने अपने गृहस्थ के दायित्वों को भी अच्छी प्रकार से निर्वाह किया। आपके तीन पुत्र थे- सबसे बड़े सुपुत्र को आपने दिल्ली से चिकित्सक की डिग्री दिलायी और उन्हें एक सफल चिकित्सक के रूप में स्थापित किया। दैवयोग से सन् 2002 से वे भी हमारे मध्य नहीं रहे। शेष दोनों पुत्रों को उच्च शिक्षा दिलाकर श्री हरिनाम प्रेस में स्थापित किया। अपनी पुत्रियों को भी उच्च कुल में विवाहित कर अपने दायित्वों का निर्वाह किया। इस समय अनेक दौहित्र-पौत्रादिकों से भरा पूरा आपका विशाल परिवार है। सभी धनधान्य, सम्पत्ति से परिपूर्ण हैं और भगवद् भक्ति में यथा शक्ति संलग्न है। आपके जन्म से लेकर आज तक अनेक चमत्कारिक घटनाओं एवं संस्मरणों का एक विशाल प्रसंग है, जिन्हें संकलित किया जा रहा है। प्रभु कृपा रही तो शीघ्र ही ग्रन्थ रूप में इसे प्रकाशित किया जाएगा। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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