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श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
पष्ठ शतकम्
श्रीवृन्दावन की स्थली सुविमल एवं कोमल है, कांत (श्रीकृष्ण) और कांता (श्रीराधा) युगल की दिव्य रत्नकांति के आधिक्य से स्फुर्त्ति प्राप्त है, अति मसृणा एवं आनन्दघन का निवास स्थान है, जहाँ तहाँ वक्षों की पत्रपूर्ण शाखाएं ही तुषार धूपादि ऊपर सहन करती है, यहाँ चन्दोआ आदि की कोई आवश्यकता नहीं है, यहाँ विराजमान होकर श्रीयुगलकिशोर अनुपम लीला करते हैं।।89।।
कहीं दिव्य कांचनमयी, कहीं महा नीलकांतमणि से उद्दीप्त और कहीं कुरुविन्द से उल्लसित, तथा कहीं विद्रुममणिमय स्थल हैं, कहीं वैदूर्यमणि से प्रकाशित और कहीं चन्द्रकांत मणि से उद्भासित हो रही है इस प्रकार एक-रस चित्ज्योतिर्मय अद्भुत श्रीवृन्दावन-भूमि को मैं नमस्कार करता हूँ।।90।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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