रास पंचाध्यायी -हनुमान प्रसाद पोद्दार पृ. 221

श्रीरासपंचाध्यायी -हनुमान प्रसाद पोद्दार

पाँचवाँ अध्याय

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तत्रैकांसगतं बाहुं कृष्णस्योत्पलसौरभम्।
चन्दनालिप्तमाघ्राय हृष्टरोमा चुचुम्ब ह।।12।।

वहाँ एक गोपी ने श्रीकृष्ण का कोमल कर-कमल अपने कंधे पर रख लिया। भगवान के उस हाथ से स्वाभाविक ही कमल-सी दिव्य सुगन्ध आ रही थी और उस पर अत्यन्त सुगन्धित चन्दन लगा हुआ था। भगवान के भुजस्पर्श और उनके दिव्य अंग-गन्ध से उस गोपी के आनन्द से रोमान्च हो आया और उसने झट भगवान के हाथ को चूम लिया।।12।।

कस्याश्चिन्नाट्यविक्षिप्तकुण्डलत्विषमण्डितम्।
गण्डं गण्डे संदधत्या अदात्ताम्बूलचर्वितम्।।13।।

एक दूसरी गोपी रास में नाच रही थी, इससे उसके कानों के कुण्डल हिल रहे थे और उन कुण्डलों की झलक उसके कपोलों पर चमक रही थी। उस गोपी ने अपने कपोल को भगवान के कपोल से सटा दिया। तब भगवान ने बड़े प्रेम से अपना चबाया हुआ पान उसके मुख में दे दिया।।13।।

नृत्यन्ती गायती काचित् कूजन्नूपुरमेखला।
पार्श्वस्थाच्युतहस्ताब्जं श्रान्ताधात् स्तनयोः शिवम्।।14।।

कोई एक गोपी अपने पैरों की पाजेब तथा करधनी के घुँघुरूओं को मधुरस्वर से झनकारती हुई नाच-गा रही थी। वह जब थक गयी और उसका हृदय धड़कने लगा, तब उसने अपने बगल में ही खड़े हुए श्यामसुन्दर के शीतल सुकोमल कर-कमल को अपने दोनों स्तनों पर रख लिया।।14।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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