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श्रीरासपंचाध्यायी -हनुमान प्रसाद पोद्दार
पाँचवाँ अध्याय
कोई गोपी भगवान श्रीकृष्ण के स्वर की अपेक्षा भी विलक्षण ऊँचे स्वर से गाने लगी। उसके विलक्षण मधुर गान को सुनकर भगवान अत्यन्त प्रसन्न हुए और ‘बहुत अच्छा’ ‘बहुत अच्छा’ कहकर उसकी प्रशंसा करने लगे। उसी राग को एक दूसरी गोपी ने ध्रुपद ताल में उठाकर गाया और भगवान ने उसको भी बड़ा आदर दिया।।10।।
कोई एक सखी रास में प्रियतम श्री श्यामसुन्दर के साथ नृत्य करते-करते थक गयी। उसके हाथों के कंगन तथा वेणियों में बँधे हुए बेले के पुष्प खिसकने लगे। तब वह अपने पार्श्व में ही स्थित श्यामसुन्दर के कंधे को पकड़कर उसके सहारे खड़ी हो गयी।।11।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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