रास पंचाध्यायी -हनुमान प्रसाद पोद्दार पृ. 220

श्रीरासपंचाध्यायी -हनुमान प्रसाद पोद्दार

पाँचवाँ अध्याय

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काचित् समं मुकुन्देन स्वरजातीरमिश्रताः।
उन्निन्ये पूजिता तेन प्रीयता साधु साध्विति।
तदेव ध्रुवमुन्निन्ये तस्यै मानं च बह्वदात्।।10।।

कोई गोपी भगवान श्रीकृष्ण के स्वर की अपेक्षा भी विलक्षण ऊँचे स्वर से गाने लगी। उसके विलक्षण मधुर गान को सुनकर भगवान अत्यन्त प्रसन्न हुए और ‘बहुत अच्छा’ ‘बहुत अच्छा’ कहकर उसकी प्रशंसा करने लगे। उसी राग को एक दूसरी गोपी ने ध्रुपद ताल में उठाकर गाया और भगवान ने उसको भी बड़ा आदर दिया।।10।।

काचिद्रासपरिश्रान्ता पार्श्वस्थस्य गदाभृतः।
जग्राह बाहुना स्कन्धं श्लथद्वलयमल्लिका।।11।।

कोई एक सखी रास में प्रियतम श्री श्यामसुन्दर के साथ नृत्य करते-करते थक गयी। उसके हाथों के कंगन तथा वेणियों में बँधे हुए बेले के पुष्प खिसकने लगे। तब वह अपने पार्श्व में ही स्थित श्यामसुन्दर के कंधे को पकड़कर उसके सहारे खड़ी हो गयी।।11।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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