रास पंचाध्यायी -हनुमान प्रसाद पोद्दार पृ. 222

श्रीरासपंचाध्यायी -हनुमान प्रसाद पोद्दार

पाँचवाँ अध्याय

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गोप्यो लब्ध्वाच्युतं कान्तं श्रिय एकान्तवल्लभम्।
गृहीतकण्ठ्यस्तद्दोर्भ्या गायन्त्यस्तं विजहिरे।।15।।

साक्षात श्री लक्ष्मी जी के एकमात्र परम प्रियतम तथा सदा अपने तत्त्व स्वरूप में ही प्रतिष्ठित भगवान श्रीकृष्ण को अपने कान्त-हृदयेश्वर के रूप में प्राप्त कर गोपसुन्दरियाँ उनके गलों में अपनी भुजाएँ डालकर उन प्रियतम की प्रेमलीला का गान करती हुई उनके साथ विहार करने लगीं।।15।।

कर्णोत्पलालकविटंककपोलधर्म-
वक्त्रश्रियो वलयनूपुरघोषवाधैः।
गोप्यः समं भगवता ननृतुः स्वकेश-
स्त्रस्तस्त्रजो भ्रमरगायकरासगोष्ठ्याम्।।16।।

उन गोपसुन्दरियों के कानों में कमल पुष्प सुशोभित थे। घुँघुराली लटें गालों को विभूषित कर रही थीं। पसीने की बूँदों से उनके मुख-सरोजों की अपूर्व शोभा हो रही थी। वे रासमण्डल में भगवान श्रीकृष्ण के साथ नृत्य कर रही थीं। उस नृत्य के साथ उनके हाथों के कंगन और पैरों की पाजेबों के बाजे बज रहे थे और भ्रमरों के दल सुर में सुर मिलाकर गान कर रहे थे। उस समय उनकी वेणियाँ में गुँथे हुए पुष्प खिसक-खिसकर गिरे जा रहे थे।।16।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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