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श्रीराधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ
श्रीकृष्णप्रवचनगोपी-प्रेम(श्लोक)
अर्थ- हे भक्तिदेवी! तुम बृंदाबन के संयोग ते फिर जुबती है गई हौ; याते ते बृन्दाबन धन्य है, जहाँ भक्ति नृत्य करै है। यह भक्ति गोपी-कृष्ण-लीला कूँ गाय-गाय कैं नृत्य करै है। यदि गोपी न होतीं तो मैं कौन के संग लीला करतौ, और भक्ति कहा गाय कैं नृत्य करती, बिचारी रोय-रोय कैं आप ही बूढ़ी है जाती। या प्रकार ये ब्रजगोपी मेरी ब्रज-लीला की आधार-स्वरूपा हैं, तथा स्वयं मेरी प्राण-जीवन-स्वरूपा हैं। याही सौं प्रेम-मंदिर में इनकौ स्थान सर्वोपरि है- गोपी प्रेम की धुजा हैं।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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