राधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ पृ. 351

श्रीराधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ

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पावस-विहार-लीला

(कबित्त)

प्यार ही की कुंज और प्यार ही की सेज रची,
प्यार ही सौं प्यारे लाल प्यारी बात करहीं।
प्यार ही की चितवनि और मुसिकान हूँ प्यार ही की,
प्यार ही सौं प्यारी जू कौं प्यारौ अंक भरहीं।।
प्यार सौं लटकि रहे प्यार ही सौं मुख चहैं,
प्यार ही सौं प्यारौ प्रिया अंक भुज धरहीं।
हित ध्रुव प्यार भरी प्यारी सखी देखैं खरी,
प्यारे प्यार रह्यौ छाइ प्यार रस ढरहीं।।

श्रीजी- प्यारे! नैक दखौ तौ सही, ये मोर कैसौ अद्भुत नृत्य करि रह्यौ है?

ठाकुरजी- अहाहा, प्यारी! ये तौ बड़ौई सुंदर ढँग सौं नाचि रह्यौ है। ये नाचि-नाचि कैं आप कूँ रिझाय रह्यौ है।

श्रीजी- प्रानबल्लभ! या मोर की भाँति आप हू नवीन गती सौं नृत्य करौ और मैं ताल दऊँगी।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

क्रमांक विषय का नाम पृष्ठ संख्या
1. श्रीप्रेम-प्रकाश-लीला 1
2. श्रीसाँझी-लीला 27
3. श्रीकृष्ण-प्रवचन-गोपी-प्रेम 48
4. श्रीगोपदेवी-लीला 51
5. श्रीरास-लीला 90
6. श्रीठाकुरजी की शयन झाँकी 103
7. श्रीरासपञ्चाध्यायी-लीला 114
8. श्रीप्रेम-सम्पुट-लीला 222
9. श्रीव्रज-प्रेम-प्रशंसा-लीला 254
10. श्रीसिद्धेश्वरी-लीला 259
11. श्रीप्रेम-परीक्षा-लीला 277
12. श्रीप्रेमाश्रु-प्रशंसा-लीला 284
13. श्रीचंद्रावली-लीला 289
14. श्रीरज-रसाल-लीला 304
15. प्रेमाधीनता-रहस्य (श्रीकृष्ण प्रवचन) 318
16. श्रीकेवट लीला (नौका-विहार) 323
17. श्रीपावस-विहार-लीला 346
18. अंतिम पृष्ठ 369

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