राधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ पृ. 228

श्रीराधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ

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श्रीप्रेम-सम्पुट लीला

(दोहा)

प्रीतम प्रमुदित प्रेम तैं देखैंगे तुम ओर।
परम चतुर वे, चतुर तुम, मिली परसपर जोर।।

अर्थ- हे इंद्रमुखी, कमल-बदनी! वा समय तौ तुम मोहित नहीं भई, परंतु यदि यहाँ तुम्हारे नयन-बान तें बिंधे भये प्रीतम मन-मोहन तुम्हारी ओर कटाच्छ पात करि दैंगे तो निस्चै ही तुम्हारौ अपनपौ हाथ सौं छूटि जायगौ। तुम स्वयंहू मोहित है जाऔगी। हाँ, या परस्पर के मोहिवे में अवस्य एक विचित्र चमत्कार होयगौ।
सखी- हे प्यारी! ये तो दीर्घ स्वास लैकैं अत्यंत दुखी है रही है और अपने कमल मुख कूँ वस्वन द्वारा ढाँपि रही है।

श्रीराधा-

(श्लोक)

हा किं सखि त्वमसि दैहिकदुःखदूना
वक्षोऽथ पृष्ठमथवा व्यथते शिरस्ते।

हे सखी! कहा तुम दैहिक दुःख सौं पीड़ित हो अथवा तुम्हारे वक्ष में, पीठ में, अथवा सिर में कोई पीरा है?

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

क्रमांक विषय का नाम पृष्ठ संख्या
1. श्रीप्रेम-प्रकाश-लीला 1
2. श्रीसाँझी-लीला 27
3. श्रीकृष्ण-प्रवचन-गोपी-प्रेम 48
4. श्रीगोपदेवी-लीला 51
5. श्रीरास-लीला 90
6. श्रीठाकुरजी की शयन झाँकी 103
7. श्रीरासपञ्चाध्यायी-लीला 114
8. श्रीप्रेम-सम्पुट-लीला 222
9. श्रीव्रज-प्रेम-प्रशंसा-लीला 254
10. श्रीसिद्धेश्वरी-लीला 259
11. श्रीप्रेम-परीक्षा-लीला 277
12. श्रीप्रेमाश्रु-प्रशंसा-लीला 284
13. श्रीचंद्रावली-लीला 289
14. श्रीरज-रसाल-लीला 304
15. प्रेमाधीनता-रहस्य (श्रीकृष्ण प्रवचन) 318
16. श्रीकेवट लीला (नौका-विहार) 323
17. श्रीपावस-विहार-लीला 346
18. अंतिम पृष्ठ 369

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