राधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ पृ. 216

श्रीराधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ

Prev.png

श्रीरासपञ्चाध्यायी लीला

इहि बिधि बिबिध बिलास बिलसि निसि कुंज सदन के।
चले जमुन जल क्रीडन ब्रीड़न बृंद मदन के।।
उरसि मरगजी माल चाल मद-गज जिमि मलकत।
घूमत रसभरे नैन गंड थल स्रम कन झलकत।।
धाय जमुन जल धँसे, लसे छबि परति न बरनी।
बिहरत मनु गजराज संग लियें तरुनी करनी।।
तियनि के तन जल-मगन बदन तहुँ यौं छबि छाए।
फूलि रहे जनु जमुन कनक के कमल सुहाए।।
मंजुल अंजुलि भरि-भरि पिय पैं तिय जल मेलत।
जनु अलि सौं अरबिंद बृंद अकरंदनि खेलत।।
छिरकत छल सौं छैल जो मंजुल अंजुलि भरि-भरि।
अरुन कमल-मंडली फाग खेलत जनु रँग करि।।
रुचिर दृगंचल चंचल अंचलबर जगमग अस।
सरस कनक के कंजन खंजन जाल परत जस।।
Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

क्रमांक विषय का नाम पृष्ठ संख्या
1. श्रीप्रेम-प्रकाश-लीला 1
2. श्रीसाँझी-लीला 27
3. श्रीकृष्ण-प्रवचन-गोपी-प्रेम 48
4. श्रीगोपदेवी-लीला 51
5. श्रीरास-लीला 90
6. श्रीठाकुरजी की शयन झाँकी 103
7. श्रीरासपञ्चाध्यायी-लीला 114
8. श्रीप्रेम-सम्पुट-लीला 222
9. श्रीव्रज-प्रेम-प्रशंसा-लीला 254
10. श्रीसिद्धेश्वरी-लीला 259
11. श्रीप्रेम-परीक्षा-लीला 277
12. श्रीप्रेमाश्रु-प्रशंसा-लीला 284
13. श्रीचंद्रावली-लीला 289
14. श्रीरज-रसाल-लीला 304
15. प्रेमाधीनता-रहस्य (श्रीकृष्ण प्रवचन) 318
16. श्रीकेवट लीला (नौका-विहार) 323
17. श्रीपावस-विहार-लीला 346
18. अंतिम पृष्ठ 369

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः