(श्लोक)
मेघैर्मेदुरमम्बरं वनभुवः श्यामास्तमालद्रुमै-
र्नक्तं भीरुरयं तदिमं राधे गृहं प्रापय ।
इत्थं नन्दनिदेशतश्चलितयोः प्रत्यध्वकुञ्जद्रुमं
राधामाधवयोर्जयन्ति यमुनाकूले रहःकेलयः ।।
(पद)
- चकित भए नँदराय जानि यह सीतल-मंद बयार ।
- श्रीराधा-अंग-कांति परत बन भयौ सकल उजियार ।।
- कोटि चंद्र द्युति सम मुख झलकत, नील बसन सुभ अंग ।
- कंचन कंकन हार मुद्रिका दुरे अंग के रंग ।।
- भयौ प्रकास प्रथम दिसि, कैंधौं मिले काल यहि ठौर ।
- कैसें पच्छिम छाँड़ि छिप्यौ रबि अब पूरब की ओर ।।
- कैंधौं आज इंदु-मंडल में घिर्यौ मनिन कौ कोट ।
- नंद-कुँवर कर ढाँपि नैन तब झाँकत अँगुरी ओट ।।