राधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ पृ. 171

श्रीराधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ

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श्रीरासपञ्चाध्यायी लीला

(श्लोक)

तत्रैकोवाच हे गोपा दावाग्निं पश्योतोल्बणम्।
चक्षूंष्याश्वपिदध्वं वो विधास्ये क्षेममञ्जसा।।

अर्थ- एक गोपी बोली- ‘अरे ग्वालबालौ! देखौ, बन में भयंकर दावानल जरि उठी है; पर तुम डरौ मत। सीघ्र आँख मूँदि लेऔ, मैं तुम्हारी रच्छा करूँगो।’
(तुक)

एक भेष दमोदर धारे, जिन जमलार्जुन तारे।।

(श्लोक)

बद्धान्यया स्रजा काचित् तन्वी तत्र उलूखले।
भीता सुदृक् पिधायास्यं भेजे भीतिविडम्बनम्।।

अर्थ- एक गोपी कृष्ण बनी, दूसरी जसोदा; वानें कृष्ण कूँ फूलन की माला ते ऊखल में बाँधि दियौ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

क्रमांक विषय का नाम पृष्ठ संख्या
1. श्रीप्रेम-प्रकाश-लीला 1
2. श्रीसाँझी-लीला 27
3. श्रीकृष्ण-प्रवचन-गोपी-प्रेम 48
4. श्रीगोपदेवी-लीला 51
5. श्रीरास-लीला 90
6. श्रीठाकुरजी की शयन झाँकी 103
7. श्रीरासपञ्चाध्यायी-लीला 114
8. श्रीप्रेम-सम्पुट-लीला 222
9. श्रीव्रज-प्रेम-प्रशंसा-लीला 254
10. श्रीसिद्धेश्वरी-लीला 259
11. श्रीप्रेम-परीक्षा-लीला 277
12. श्रीप्रेमाश्रु-प्रशंसा-लीला 284
13. श्रीचंद्रावली-लीला 289
14. श्रीरज-रसाल-लीला 304
15. प्रेमाधीनता-रहस्य (श्रीकृष्ण प्रवचन) 318
16. श्रीकेवट लीला (नौका-विहार) 323
17. श्रीपावस-विहार-लीला 346
18. अंतिम पृष्ठ 369

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