राधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ पृ. 157

श्रीराधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ

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श्रीरासपञ्चाध्यायी लीला

समाजी-
हे मुक्ताफल-बेलि! धरें मुकता-मनि-माला।
निरखे नैन बिसाल मोहने नंद के लाला।।
अहो असोक हर सोक, लोक-मनि पियहि बतावहु।
अहो पनस, सुभ सनस मरत तिय अमृत पियावहु।।


(श्लोक)

दृष्टो वः कच्चिदश्वत्थ प्लक्ष न्यग्रोध नो मनः।
नन्दसूनुर्गतो हृत्वा प्रेमहासावलोकनैः।।

अर्थ- हे पीपर, हे पाकर, हे बट! नंदनंदन स्यामसुंदर अपनी प्रेमभरी मुसुक्यान और चितवन ते हम सब कौ चित्त चुराय लै गये, आप ने कहूँ देखे होयँ तौ बताय देऔ।
दूसरी सखी- हे प्लक्ष! मृग (हरिन) के-से हैं जाके अक्ष (आँखें), धारन करैं मोर-पक्ष, ऐसे हमारे सिर के रक्षक कूँ कहूँ देख्यो होय तौ बताय देऔ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

क्रमांक विषय का नाम पृष्ठ संख्या
1. श्रीप्रेम-प्रकाश-लीला 1
2. श्रीसाँझी-लीला 27
3. श्रीकृष्ण-प्रवचन-गोपी-प्रेम 48
4. श्रीगोपदेवी-लीला 51
5. श्रीरास-लीला 90
6. श्रीठाकुरजी की शयन झाँकी 103
7. श्रीरासपञ्चाध्यायी-लीला 114
8. श्रीप्रेम-सम्पुट-लीला 222
9. श्रीव्रज-प्रेम-प्रशंसा-लीला 254
10. श्रीसिद्धेश्वरी-लीला 259
11. श्रीप्रेम-परीक्षा-लीला 277
12. श्रीप्रेमाश्रु-प्रशंसा-लीला 284
13. श्रीचंद्रावली-लीला 289
14. श्रीरज-रसाल-लीला 304
15. प्रेमाधीनता-रहस्य (श्रीकृष्ण प्रवचन) 318
16. श्रीकेवट लीला (नौका-विहार) 323
17. श्रीपावस-विहार-लीला 346
18. अंतिम पृष्ठ 369

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