यहि बिधि भक्ति कैसे होय -मीराँबाई

मीराँबाई की पदावली

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यहि बिधि भक्ति कैसे होय ।। टेक ।।
मनकी मैल हियतें न छूटी, दियो तिलक सिर धोय ।
काम कूकर लोभ डोरी, बांधि मोहि चंडाल ।
क्रोध कसाई रहत घट में, कैसे मिले गोपाल ।
बिलार विषया लालची रे, ताहि भोजन देत ।
दीन हीन ह्वै छुधा रत से, राम नाम न लेत ।
आपहि आप पुजाय के रे, फूले अँग न समात ।
अभिमान टीला कि‍ये बहु कहु, जल कहाँ ठहरात ।
जो तेरे हिय अंतर की जानै, तासों कपट न बनै ।
हिरदे हरि को नाम न आवै, मुख तें मनिया गनै ।
हरी हितु से हेत कर, संसार आसा त्याग ।
दास मीरा लाल गिरधर, सहज कर वैराग ।।162।।[1]

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. मन की मैल = मनोविकार। दियो तिलक = तिलक लगा लिया। सिर धोंय = शिर व ललाट धोकर। काम = कामनायें। कूकर = कुत्ते की तरह। चंडाल = क्रूर। काम...चंडाल = क्रूर कमानायें मुझे कुत्ते की तरह लोभ की जंजीर में बाँधे रहती हैं। घट = हृदय में। विषया = विषयोपभोगी इन्द्रियगण। बिलार... देत = सदा भोग विलास के इच्छुक लोभी इन्द्रियरूपी विलार हो तृप्त करने का प्रयत्न होता रहता है। किये बहु = अनेक बना दिये वा खड़े कर दिये हैं। अभिमान... ठहरात = सदा मिथ्यामिमान के कारण गर्वीले बने रहने पर कोई प्रभाव उपदेशादि का नहीं पड़ने पाता। मनियाँ = माला के दाने। सहज... वैराग्य = वैराग्य को आसान कर दो, वैराग्य धारण में लिए कठिन न होने पावे।

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