लेतां लेतां रामनाम रे -मीराँबाई

मीराँबाई की पदावली

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राग बिलावल




लेतां लेतां रामनाम रे, लोकडियां तो लाजां मरे छै ।। टेक ।।
हरि मंदिर जातां पांवलिया रे दूखे, फिरि आवे सारो[1] गाम, रे ।
झगड़ो थाय त्यां दौडी ने जाय रे, मूकी ने घर ना काम, रे ।
भांड भवैया गणिका नृप करतां, बेसी रहे चारे जाम, रे ।
मीरांना प्रभु गिरधर नागर, चरण कमल चित हाम, रे ।।161।।[2]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. आखो
  2. लेतां लेतां = लेते समय, लेने में। लोकड़ियाँ = संसारी लोग। लाजाँ = लाज से। लाजाँ... छे = लज्जा का अनुभव करते हैं। जाताँ = जाते समय। पाँवलियाँ = पैर। दुखे = दुखने लगते हैं। थाय = हो। त्यां = वहां। दौड़ी ने = दौड़ कर। मूकी ने = छोड़ कर। घरना = घर के। भाँड = मसखरे। भवैया = नाचने वाला भांड। गणिका = वेश्या, नर्तकी। न्रित्य = नृत्य। करताँ = करते समय। वेसी रहे = बैठे रह जाते हैं। चारे जाम = चारों याम वा प्रहर। हाम = पूर्ण रूप से लग कर अपना सा हो गया है, समर्पित हो गया है।

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