मन रे परसि हरि के चरण -मीराँबाई

मीराँबाई की पदावली

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स्‍तुति-वंदना


राग तिलंग



मन रे परसि हरि के चरण ।। टेक ।।
सुभग सीतल कँवल कोमल, त्रिविध ज्‍वाला हरण ।
जिण चरण प्रहलाद परसे, इंद्र पदवी धरण ।
जिण चरण ध्रुव अटल कीने, राखि अपनी सरण ।
जिण चरण ब्रह्मांड भेटयो, नखसिखाँ सिरी धरण ।
जिण चरण प्रभु परसि लीने, तरी गोतम धरण ।
जिण[1] चरण कालीनाग नाथ्‍यो, गोपलीला करण ।
जिण चरण गोबरधन धार्यो, इन्‍द्र[2] को ग्रब हरण ।
दासि मीराँ लाल गिरधर, अगम तारण तरण ।।1।।[3]

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. इसके पहले ‘जिण चरण प्रभु परसि लीने, भये जग आमरण ।’ पंक्ति भी कहीं-कहीं मिलती है।
  2. ‘गर्व मघवा हरण’ ।
  3. परसि = स्पर्श कर, वंदना कर। कँवल कोमल = कमल के समान कोमल। त्रिविध ज्वाला = तीन प्रकार के ताप वा दुःख जो 1. आध्यात्मिक अर्थात् शारीरिक ( जैसे रोग, व्याधि ) और मानसिक ( जैसे क्रोध, लोभ ) 2. आधिदैविक अर्थात् देवताओं वा प्राकृतिक शक्तियों द्वारा पहुँचने वाले ( जैसे आँधी, अवर्षण ) तथा 3. आधिभौतिक अर्थात् स्थावर व जंगम ( जैसे पशु, सर्पादि ) भूतों द्वारा उत्पन्न होने वाले माने जाते हैं। जिण = जिन। प्रह्लाद = भक्त प्रह्लाद। धरण = धारण वा प्राप्त करने वाले हुए, प्राप्त की। ध्रुव = भक्त ध्रुव। अटल कीन्हे = अचल ध्रुवलोक के रूप में स्थापित किया। भेट्यो = व्याप्त किया। नखसिखाँ = नखशिख पर्यंत, सर्वागं में। सिरि धरण = श्री वा शोभा धारण करने वाले। परसि लीने = छू लेने मात्र से। गोतम धरण = गौतम ऋषि की गृहिणी वा पत्नी, अहिल्या। नाथ्यो = वश में किया गोपलीला करण = गोपों की लीला करने वाले, कृष्ण। ग्रव = गर्व, घमंड। अगम... तरण = अगम्य वा अपार संसार सागर से पार कराने वाले बेड़े के समान।

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