मीराँबाई की पदावली पृ. 55

मीराँबाई की पदावली

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(ऊ) उपसंहार

मीराँबाई जोधपुर के एक प्रतिष्ठित राजपूत घराने में जन्मी व पली थीं और उनके जीवन-काल का एक महत्त्वपूर्ण अंश उदयपुर के प्रसिद्ध महाराणा वंश के साथ भी व्यतीत हुआ था। उनके हृदय पर एक सच्ची राजपूत रमणी के साहस व निष्ठा की गहरी छाप लगी हुई थी और अपने लक्ष्य की रक्षा अथवा व्रतपाल की चेष्टा में वे उस आदर्श के अनुसार अपना सर्वस्व तक उत्सर्ग करने पर आमरण उद्यत रहीं। कठिनाइयों ने उन्हें निरुत्साहित करने की जगह, और भी शक्ति प्रदान की और स्वजन वियोग जन्य कष्टों तक ने उनमें नैराश्य की जगह विषाद की एक अनोखी भावना जागृत कर दी। उनके सहज वैराग ने उनके उद्देश्य को अधिक स्पष्ट व आकर्षक बना डाला। उनकी भक्ति का आदर्श अत्यन्त ऊँचा था। उनके परमभाव का निर्वाह किसी साधार भक्त के वश की बात नहीं – यदि पुरष है तो उस पर अस्वाभाविकता का आरोप होगा और यदि स्त्री है तो उसे अपने ही समाज द्वारा लांछित होना पड़ेगा। मीरां को भी, इसके कारण, विकट यातनाएँ झेलनी पड़ीं, किन्तु, अपनी धुन की पक्की होने से, वे आपत्तियों की अवहेलना बराबर करी गईं। उन्होंने, प्रसिद्ध सूफी साधिका रबिया की भाँति, नितांत एकरस का जीवन यापन किया और ईसाई भक्तिन टेरेसा की भाँति, अपने Wound of Love या प्रेम की पीर का आस्वादन वे निरंतर आनंदपुर्वक करती रहीं।

उन्होंने जो कुछ भी कहा वह उनकी आन्तरिक अनुभूति की तीव्रता के कारण रागमय होकर या गीत रूप में ही निकला। उनके पदो की छंदोनियमानुसार परीक्षा करने की अपेक्षा कहीं अधिक आवश्यक उनके जीवन को ही किसी श्रेष्ठ काव्य का विषय बनाना होगा। मीरांबाई के जीवन, आदर्श व काव्य सभी सदा स्वच्छंद रहे और अपनी इष्ट सिद्धि के लिए भी उन्होंने रागनुमा भक्ति के ही अवैध साधनों को अपनाया। वे उनमुक्त व निर्द्वंद भाव से रहकर सदा, आकाश विहारिणी कोयल की भाँति, अपनी हृदय – संचित प्रेम सुधा स्वत: प्रसूत गीतियों के रूप में, बरसाती रहीं। ऐसा किए बिना उनके लिए श्वास प्रश्वास तक का लेना असह्य था। उनके दो सहस्र से भी अधिक पूर्व की ग्रीक कवयित्री सैफो[1] के निमित्त कहे गए शब्द : - Loves[2] priestess, mad with pain and joy of song, song`s, prestess, mad with joy and pain of Love.

‘गीति-वेदना-सौख्य-मग्न, थी प्रेम-पुजारिन
प्रेम-सौख्य-वेदन विकल, थी गीति-पुजारिन।’
आज उनके लिए भी, प्राय: उसी प्रकार, उपयुक्त समझे जा सकते हैं।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. Sappho
  2. Quoted in introduction to Saooho : One hundred Lyries (King`s Classics) p. XIV.

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