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मेरे तो गिरधर गोपाल -स्वामी रामसुखदास
15. अनिर्वचनीय प्रेम
आनन्द भी आये और कमी भी दीखे-यह प्रेम की अनिर्वचनीयता है। जो पूर्णता को प्राप्त हो गये हैं, जिनके लिये कुछ भी करना, जानना और पाना शेष नहीं रहा, ऐसे महापुरुषों में भी प्रेम की भूख रहती है। उनका भगवान् की तरफ स्वतः स्वाभाविक खिंचाव होता है। इसलिये भगवान् ‘आत्मारामगणाकर्षी’ कहलाते हैं। सनकादि मुनि ‘ब्रह्मानंद सदा लयलीना’ होते हुए भी भगवल्लीला कथा सुनते रहते हैं- जब वे वैकुण्ठ धाम में गये, तब वहाँ भगवान् के चरणकमलों की दिव्य गन्ध से उनका स्थिर चित्त भी चंचल हो उठा- तस्यारविन्दनयनस्य पदारविन्द- ‘प्रणाम करने पर उन कमलनेत्र भगवान् के चरण-कमल के पराग से मिली हुई तुलसी-मंजरी की वायु ने उनके नासिका-छिद्रों में प्रवेश करके उन अक्षर परमात्मा में नित्य स्थित रहने वाले ज्ञानी महात्माओं के भी चित्त और शरीर को क्षुब्ध कर दिया।’ |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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