दरस बिन दूखण लागे नैण -मीराँबाई

मीराँबाई की पदावली

Prev.png
विरह निवेदन

राग देस


दरस बिन दूखण लागे नैण ।। टेक ।।
जब के तुम बिछुरे प्रभु मोरे, कबहुँ न पायो चैन ।
सबद सुणत मेरी छतियाँ काँपै, मीठे मीठे[1] बैन ।
बिरह कथा कासूँ कहूँ सजनी, बह गई करवत अैन ।
कल[2] न परत पल हरि मग जोवत, भई छमासी रैण ।
मीराँ के प्रभु कब रे मिलोगे, दुख मेटण सुख दैण ।।103।।[3]

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. लगे तुम
  2. एक टकटकी पंथ निहारूँ
  3. दूखण लागे = दुखने लगे। जब के = जब से। सुणत = स्मरण करते ही, याद आते ही। छतियाँ = छाती। बहगई करवत = आरी चली गई। ऐन = पूरी पूरी। देखो - ‘शूती साजणा संभर्या, करवत बूही अंगि’ - ढोला मारूरा दूहा )। बह गई... एन = अत्यन्त कष्ट हुआ। छ मासी = छः महीनों जैसी लम्बी। मेटण = मेटने वाले। दैण = दूर करने वाले।

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः