घडी़ एक नहिं आवड़े -मीराँबाई

मीराँबाई की पदावली

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विरह निवेदन

राग पहाड़ी


घडी़ एक नहिं आवड़े, तुम दरसण बिन मोय ।
तुम हो मेरे प्राण जी, कासूँ जीवण होय ।
धान न भावै नींद न आवै, बिरह सतावै मोहि ।
घायल सी घूमत फिरूँ रे, मेरो दरद न जाणै कोय ।
दिवस तो खाय गमाइयो रे, रैण गमाई सोइ ।
प्राण गमायो झूरताँ रे, नैण गमाया रोइ ।
जो मैं ऐसी जाणती रे, प्रीत कि‍याँ दुख होइ ।
नगर ढंढोरा फेरती रे, प्रीत करो मत कोइ ।
पंथ निहारो डगर बुहारूँ, ऊभी मारग जोइ ।
मीराँ के प्रभु कब रे मिलोगे, तुम मिलियाँ सुख होइ ।।102।।[1]

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. आवड़े = सुहाता वा अच्छा लगता है। मोय = मुझे। घड़ी... मोय = तुझे देखे बिना घड़ी भर भी नहीं रहा जाता। कासूँ = किससे, किस प्रकार। धान = अन्न (देखो - पद 84)। गमाइयो = ब्यतीत होता है। झूरताँ = शोकावेग में ही। गँवाया = खो दिये। ऊभी... जोइ = खड़ी खड़ी राह देखा करती हूँ। ( देखो - ‘जानतौ जौ इतनी परतीत तौ प्रीति की रीति को नाम न लेतौ - ठाकुर)।

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