गीत गोविन्द -जयदेव पृ. 382

श्रीगीतगोविन्दम्‌ -श्रील जयदेव गोस्वामी

दशम: सर्ग:
चतुरचतुर्भुज:

ऊनविंश: सन्दर्भ:

19. गीतम्

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बालबोधिनी- इस प्रकार मुरवैरी श्रीकृष्ण की यह वचनावली जो श्रीराधा को अभिलषित करके सर्वोत्कृष्ट रूप से प्रकाशित हुई है, वे सब प्रकार से जययुक्त हों। अपनी परम प्रेयसी श्रीराधा के मान-अपमान हेतु ये वाक्य समूह अति समर्थ एवं परम सुखप्रद हैं। इस मनोहर अष्टपटी में चतुर एवं प्रिय मीठी बातों का ही संकलन है, पद्मावती अर्थात् श्रीराधा-श्रीकृष्ण के ऊपर विजयिनी हों और विजयी हों। भारती से भूषित, पद्मावती-पति जयदेव, इसी अष्टपदी में कवि जयदेव की स्फूर्ति को श्रीकृष्ण ने जयदेव के वेश में स्वयं लिपिबद्ध किया है- देहि पदपल्लवं मे उदारम्....।

यह गीत गीतगोविन्द का उन्नीसवाँ प्रबन्ध है। इस प्रबन्ध का नाम चतुर्भुजरागराजिचन्द्रोद्योत है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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गीत गोविन्द -श्रील जयदेव गोस्वामी
सर्ग नाम पृष्ठ संख्या
प्रस्तावना 2
प्रथम सामोद-दामोदर: 19
द्वितीय अक्लेश केशव: 123
तृतीय मुग्ध मधुसूदन 155
चतुर्थ स्निग्ध-मधुसूदन 184
पंचम सकांक्ष-पुण्डरीकाक्ष: 214
षष्ठ धृष्ठ-वैकुण्ठ: 246
सप्तम नागर-नारायण: 261
अष्टम विलक्ष-लक्ष्मीपति: 324
नवम मुग्ध-मुकुन्द: 348
दशम मुग्ध-माधव: 364
एकादश स्वानन्द-गोविन्द: 397
द्वादश सुप्रीत-पीताम्बर: 461

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