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श्रीगीतगोविन्दम् -श्रील जयदेव गोस्वामी
दशम: सर्ग:
चतुरचतुर्भुज:
ऊनविंश: सन्दर्भ:
19. गीतम्
बालबोधिनी- इस प्रकार मुरवैरी श्रीकृष्ण की यह वचनावली जो श्रीराधा को अभिलषित करके सर्वोत्कृष्ट रूप से प्रकाशित हुई है, वे सब प्रकार से जययुक्त हों। अपनी परम प्रेयसी श्रीराधा के मान-अपमान हेतु ये वाक्य समूह अति समर्थ एवं परम सुखप्रद हैं। इस मनोहर अष्टपटी में चतुर एवं प्रिय मीठी बातों का ही संकलन है, पद्मावती अर्थात् श्रीराधा-श्रीकृष्ण के ऊपर विजयिनी हों और विजयी हों। भारती से भूषित, पद्मावती-पति जयदेव, इसी अष्टपदी में कवि जयदेव की स्फूर्ति को श्रीकृष्ण ने जयदेव के वेश में स्वयं लिपिबद्ध किया है- देहि पदपल्लवं मे उदारम्....। यह गीत गीतगोविन्द का उन्नीसवाँ प्रबन्ध है। इस प्रबन्ध का नाम चतुर्भुजरागराजिचन्द्रोद्योत है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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सर्ग | नाम | पृष्ठ संख्या |