गीत गोविन्द -जयदेव पृ. 275

श्रीगीतगोविन्दम्‌ -श्रील जयदेव गोस्वामी

सप्तम: सर्ग:
नागर-नारायण:

त्रयोदश: सन्दर्भ

13. गीतम्

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अथागतां माधवमन्तरेण सखीमियं वीक्ष्य विषादमूकाम्।
विशप्रमना रमितं कयापि जनार्दनं दृष्टवदेतदाह ॥2॥[1]

इति त्रयोदश: सन्दर्भ:।

अनुवाद- माधव के बिना सखी को आया देख विषण्ण चित्त से मौन धारण कर श्रीराधा आशंकित होकर सोचने लगीं जनार्दन किसी और कामिनी के साथ रमण कर रहे हैं क्या?

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. अन्वय- [चन्द्रोदयेन श्रीकृष्णागमनप्रतिवन्धे सति तं बिना सख्या आगमने तस्या विप्रलब्धावस्थां वर्णयितुमाह]- विप्रलब्धालक्षणं यथा- "प्रिय:कृत्वापि सप्रेतं यस्या नायाति सन्निाधिम्। प्रिलब्धेति सा ज्ञेया नितान्तमवमानिता।।" इति साहित्यदर्पणे।। अथ (वितर्कानन्तरं) माधवम् अन्तरेण (हरिं बिना) आगतां अत: विषादमुकां (दु:खातिशयेन वक्तुमशक्ताम् अकृत-कार्यत्वादित्यर्थ:) सखीं वीक्ष्य इयं (राधा) जनार्दनं कयापि रमितं दृष्टवत्र (दृष्टमिव) विशंकमाना [सती] एतत् (वक्ष्यमाणं वचनम्) आह ॥2॥

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सर्ग नाम पृष्ठ संख्या
प्रस्तावना 2
प्रथम सामोद-दामोदर: 19
द्वितीय अक्लेश केशव: 123
तृतीय मुग्ध मधुसूदन 155
चतुर्थ स्निग्ध-मधुसूदन 184
पंचम सकांक्ष-पुण्डरीकाक्ष: 214
षष्ठ धृष्ठ-वैकुण्ठ: 246
सप्तम नागर-नारायण: 261
अष्टम विलक्ष-लक्ष्मीपति: 324
नवम मुग्ध-मुकुन्द: 348
दशम मुग्ध-माधव: 364
एकादश स्वानन्द-गोविन्द: 397
द्वादश सुप्रीत-पीताम्बर: 461

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