विषय सूची
श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
नवमं शतकम्
अपने प्रियतम-युगल के अति अनुराग में बार-बार पुलकित हो रही है, दोनों के निगूढ़ इंगितों को जान कर दोनों के लिए सन्तोष वन्या प्लावित करने वाली है, श्रीराधा की पक्षपातिनी होने से परिहासादि क्रियाओं में विशेष निपुणा है, श्री प्राणेश्वरी की चरण-सेवा मे नियुक्त होने से नित्य तत्परा होकर अवस्थित है।।60।।
कभी वह मन्त्रादिरूप मधुर शीतल वाक्यामृत द्वारा कुछ पूछती हैं, कभी समस्त सखियों की वञ्चना करके उसको ही केलिविलासादि रचाने का आदेश होता है, कभी गुप्त मन्त्र बताकर प्रेमपूर्वक उसे कहीं भेजा जाता है, कभी अगाध मधुर आनन्द में निमग्न होकर वह पुलकित होती है।।61।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रमांक | पाठ का नाम | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज