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श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
सप्तमं शतकम्
जो गुरु-पत्नि के पास कोटिबार गमन करता है, अर्बुद विप्र पत्नियों से भी संगम करता है, चाहे सोने की चोरी और मद्यपान करता है, वा ऐसे करने वाले पुरुषों के संग रहता है, या दूसरे उद्भट गोवधादि जनित महा-महा पापों को भी करता रहता है तथापि यदि वह मरण पर्यन्त श्रीवृन्दावन-वास का निश्चय कर उसका अच्छी प्रकार पालन करता है, तो वही महा धार्मिक पुरुष है।।20।।
धर्म की वार्त्ता तक जो नहीं जानता और जिसे सब अधर्मों ने ग्रस रखा है चांडाल भी जिसे अनेक बार धिक्कार करते हैं खोटे कर्मों के करने से जिसे म्लेच्छों ने भी बहिष्कृत किया है। इस प्रकार के मनुष्य को भी यदि श्रीवृन्दावन अपनी असीम से क्षमा करते हुए मरण पर्य्यन्त वास प्रदान करे, तो उसके समान धन्य और कोई नहीं है।।21।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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