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श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
चतुर्थं शतकम्
बजते हुए नूपुरों एवं मेखलारज्जु के द्वारा उनकी (श्रीराधा-सखियों की) पादांगुलि अति मनोहर हो रही हैं, वे श्रेष्ठ मणिमय केयूर व चुड़ाओं के साथ अति सुन्दर नूपुरों की शोभा से विभूषित हो रही हैं, एवं उनके सुन्दर स्थूल नितम्ब देश पर केश-गुच्छबद्ध वेणी लतारूप से डोलायमान हैं, उसके नीचे प्रफुल्लित मल्लिका की विशाल माला है, उस पर मधुकर विचर रहे हैं।।1।।
श्रीराधा-दासीगण सुन्दर शंखवत् त्रिरेखायुक्त कण्ठ में हार धारण कर रही हैं, उनके श्रीहस्त लाल कमलवत् हैं, रत्नमय अंगुलियों की कान्ति विच्छृरित हो रहीं है, वे नित्य किशोर अवस्थायुक्त हैं, निपुणता की परमकाष्ठा को प्राप्त हैं एवं रतिविलासादि की महा संगीत विद्या जानने वाली हैं, (अथवा-महासंगीतविद्या में अति निपुण हैं) श्रुति-शिरोमणिगण उनकी चेष्ठा को अणुमात्र भी नहीं जान सकते -।।2।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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