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श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
तृतीय शतकम्
स्वर्ण, हीरा, इन्द्रकान्त खचित वैदूर्य मणियों से बने हुए सुन्दर रंगमञ्चों से, मत्त मयूरों के महा-आनन्दजनक ताण्डवनृत्य से, विचित्र हरिणीगण के मनोहरी सचकित दृष्टिपात से, सब दिशाओं को सुवासित करने वाले अनन्त सुगान्धित द्रव्यों से शोभित-।।99।।
कह्लार, उत्पल, पुण्डरीक कुमुदादि आश्चर्यमय फूलों से शोभित होने के कारण मत्त विचित्र पक्षियों के आनन्द कोलाहल से मुखरित, दिव्य दिव्य अनेक नदी सरोवरों से युक्त एवं श्रीराधा-कृष्ण के प्रेमसारात्मक अति आश्चर्यजनक रसमय केलिविलासादि के द्वारा सुमधुर-।।100।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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