राधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ पृ. 249

श्रीराधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ

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श्रीप्रेम-सम्पुट लीला

श्रीजी- हे देवांगने, आप देबी हौ, जोग-सिद्धि आदि जानौ हौ। मैं तो मनुष्यलोक में रहिबेवारी हूँ, आपकी बराबरी नायँ करि सकूँ, परंतु मैंने जो कछु कही वा पै बिस्वास करौ तब तौ आगें हू कछु कहूँ, अन्यथा व्यर्थ में क्यौं बोलूँ?

देवी- अजी, बिस्वास करायबे की आपमें सक्ति होयगी तौ क्यौं न बिस्वास करूँगी? परंतु यदि आप बिस्वास कराय ही नहीं सकौगी तौ मैं आपके प्यारे कूँ प्रेमी कैसैं मानूँगी।

श्रीजी- हे सखी, आप तौ परिहास करिबे में चतुर हौ।

देवी- हे राधे, आप उनके मन की बात जानौ हौ, यामें कछू ही संदेह नहीं, परंतु वे आपके मन की बात कूँ जानैं हैं कि नहीं, ये तौ बताऔ।

श्रीजी- हे सखी, ये बात क्यौं पूछौ हौ?

देवी- हे राधे, मैंने ये प्रस्न बड़ी ही ढीठता सौं कियौ है, यासौं सब रहस्य गुप्त न राखि कैं मेरे सनमुख ठीक-ठीक कहौ।

श्रीजी- हे देवांगने, प्यारे मेरे हृदय में निवास करैं हैं और मैं प्यारे के हृदय में समाई भई हूँ। प्यारे मेरे मन की बात कूँ जानैं हैं और मैं प्यारे के मन की बात कूँ जानूँ हूँ। और वास्तव में तौ ये सब आरोप मात्र हैं। हम दोनों सत्य सत्य एक ही आत्मा में ओत-प्रोत दो सरीर भर हैं।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

क्रमांक विषय का नाम पृष्ठ संख्या
1. श्रीप्रेम-प्रकाश-लीला 1
2. श्रीसाँझी-लीला 27
3. श्रीकृष्ण-प्रवचन-गोपी-प्रेम 48
4. श्रीगोपदेवी-लीला 51
5. श्रीरास-लीला 90
6. श्रीठाकुरजी की शयन झाँकी 103
7. श्रीरासपञ्चाध्यायी-लीला 114
8. श्रीप्रेम-सम्पुट-लीला 222
9. श्रीव्रज-प्रेम-प्रशंसा-लीला 254
10. श्रीसिद्धेश्वरी-लीला 259
11. श्रीप्रेम-परीक्षा-लीला 277
12. श्रीप्रेमाश्रु-प्रशंसा-लीला 284
13. श्रीचंद्रावली-लीला 289
14. श्रीरज-रसाल-लीला 304
15. प्रेमाधीनता-रहस्य (श्रीकृष्ण प्रवचन) 318
16. श्रीकेवट लीला (नौका-विहार) 323
17. श्रीपावस-विहार-लीला 346
18. अंतिम पृष्ठ 369

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