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श्रीराधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ
श्रीरासपञ्चाध्यायी लीला(श्लोक)
अर्थ- प्यारी सखियौ, भगवान् श्रीकृष्ण अपने चरन कमल तें जा रज कौ स्पर्श कर दैय हैं, वह धन्य है जाये है। वाके अहोभाग्य हैं; क्योंकि ब्रह्मा, संकर, लक्ष्मी, आदि हू अपने असुभ नष्ट करिबे के लियें वा रज कँ अपने सीस पै धारण करैं हैं।
(श्लोक)
अर्थ- अरी सखी, यहाँ तौ वा गोपी के चरन नहीं दीखै हैं। ऐसौ जानि परै है कि यहाँ स्यामसुंदर नें सोच्यो होयगौ कि मेरी प्रेयसी के सुकुमार चरनन में घास की नोंक गड़ती होयगी, यासौं अपने कंधा पै चढाय लियौ होयगौ। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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