विषय सूची
श्रीराधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ
श्रीरासपञ्चाध्यायी लीलाहे प्रियतम! आप ही सबके परम बंधु, आत्मा और प्रेमास्पद हौ; यातैं चतुर पुरुष आप ही सौं प्रेम करैं हैं। संसार के पति-पुत्रादिक तौ अपनी ममता में फाँसि कैं दुख दैबे वारे ही हैं। उनसूँ हमारौ कहा प्रयोजन है! हे कमलनैन! चिरकाल सौं हमने सेवाभिलाष रूप लता लगायी राखी है, ताकूँ आप निठुराई सौं छेदन मत करौ।
हे प्यारे! हम लोगन कौ चित्त अब तक घर के काम-काजन में लगि रह्यौ हतौ, सो तौ आपने हरन करिकैं लूटि लियौ और हमारे हाथन कूँ बाँधि लिये। हमारे पाँव हूँ अब आपके चरन तल सौं दूर जायबे के लिए तैयार नाँय हैं, जापै आप जाऔ-जाऔ की धुनि लगावौ हौ। तब आप ही बताऔ, हम कैसैं ब्रज कूँ बगद कैं जायँ और वहाँ जाय कैं हू कहा करैं।
हे प्यारे! आपकी मधुर मुसक्यानयुक्त प्रेम-सुधामयी दृष्टि और मुरली की मधुरतम तान नें हमारे हृदयन में आपके प्रेम की अग्नि धधकाय दीनी है। वह हम कूँ भस्म किये दै रही है। हे सखा! या अग्नि कूँ आप अपने धरामृत-रस सौं सींचि कै बुझावौं; नहीं तौ वह हमारे सब शरीर कूँ स्वाहा करि कैं हमैं जोगीन की-सी गति दै दैगी और हम ध्यान के द्वारा आपकी चरन-रज कूँ प्राप्त है जायँगी। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रमांक | विषय का नाम | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज