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श्रीगीतगोविन्दम् -श्रील जयदेव गोस्वामी
प्रथम सर्ग
सामोद-दामोदर
अथ तृतीय सन्दर्भ
3. गीतम्
वसन्त-राग यति-तालाभ्यां गीयते यह तीसरा प्रबन्ध वसन्तराग तथा यति-ताल से गाया जाता है। वसन्त राग का स्वरूप है। शिखण्ड-बर्होच्चय-बद्धचूड़: पुष्णन् पिकं चूत-नवांकुरेण। अर्थात् वसन्तरागयुक्त पुरुष का सिर मयूरपिच्छ से बँधा होता है। आम्रमंजरी तथा लताओं से वह श्रेष्ठ कोयल समूह को परिपुष्ट बनाता रहता है। सशरीर कामदेव के समान वह प्रसन्न मदमत्त गजराज के समान भ्रमण करता है। ललित-लव लता-परिशीलन-कोमल-मलय-समीरे
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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