गीत गोविन्द -जयदेव पृ. 457

श्रीगीतगोविन्दम्‌ -श्रील जयदेव गोस्वामी

एकादश: सर्ग:
सामोद-दामोदर:

द्वाविंश: सन्दर्भ:

22. गीतम्

Prev.png

जयश्री-विन्यस्तैर्महित इव मन्दार कुसुमै:
स्वयं सिन्दुरेण द्विप-रण-मुदा मुद्रित इव।
भुजापीड़-क्रीड़ाहत-कुवलयापीड-करिण:
प्रकीर्णासृग्बिन्दुर्जयति भुजदण्डो मुरजित: ॥4॥[1]

अनुवाद- बाहु-युद्ध में कुवलयापीड़ नामक हस्ती को मार देने से रुधिर (रक्त) बिन्दुओं से सुशोभित, हाथी के साथ युद्ध के उल्लास में सिन्दूर से चिह्नित, विजय-श्री द्वारा मन्दार पुष्पों से विभूषित मुरजित कृष्ण का विशाल भुजदण्ड जयजयकार को प्राप्त हो।


Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. अन्वय- [तत्र तया अभिलाष-विशेषेण आलोच्यमानं श्रीकृष्णस्य भुजदण्डं स्मरन् तत्सौन्दर्यं वर्णयति कवि:]- भूजापीड़- क्रीड़ाहत-कुवलयापीड़करिण: (भूजापीड़ेन बाहुभ्यां सम्यक् पीड़नेन क्रीड़या अवलीलया हतस्य कुवलयापीड़ाख्यस्य कंसकरिण:) प्रकीर्णासृग्विन्दु: (प्रकीर्णा: विक्षिप्ता लग्ना इति यावत् असृग्विन्दव: शोणितविन्दव: यत्र तादृश:) जयश्रीविन्यस्तै: (जयश्रिया विजयलक्ष्म्या विन्यस्तै: अर्पितै:) मन्दा-कुसुमै: (देवतरुपुष्पै:) महित: (अर्चित:) इव; [जयश्रीपूजितत्त्वेन हेतुना उत्पेक्षान्तरमाह]- द्विप-रण-मुदा (द्विपेण करिणा सह य: रण: संग्राम: तेन मुदा हर्षेण) स्वयं सिन्दूरेण मुद्रित: (राजित:) इव [एतादृश:] मुरजित: (मुरारे: श्रीहरे:) भुजदण्ड: जयति [अतएव विप्रलम्भानन्तरप्राप्यानन्देन सहितो गोविन्दो यत्र सोऽयम् एकादश: सर्ग:) ॥4॥

संबंधित लेख

गीत गोविन्द -श्रील जयदेव गोस्वामी
सर्ग नाम पृष्ठ संख्या
प्रस्तावना 2
प्रथम सामोद-दामोदर: 19
द्वितीय अक्लेश केशव: 123
तृतीय मुग्ध मधुसूदन 155
चतुर्थ स्निग्ध-मधुसूदन 184
पंचम सकांक्ष-पुण्डरीकाक्ष: 214
षष्ठ धृष्ठ-वैकुण्ठ: 246
सप्तम नागर-नारायण: 261
अष्टम विलक्ष-लक्ष्मीपति: 324
नवम मुग्ध-मुकुन्द: 348
दशम मुग्ध-माधव: 364
एकादश स्वानन्द-गोविन्द: 397
द्वादश सुप्रीत-पीताम्बर: 461

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः