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श्रीगीतगोविन्दम् -श्रील जयदेव गोस्वामी
दशम: सर्ग:
चतुरचतुर्भुज:
ऊनविंश: सन्दर्भ:
19. गीतम्
अनुवाद दूसरी नायिका के प्रति मुझे आसक्त समझकर व्यर्थ की शंकाओं का परित्याग कर दो। परस्पर अविरल स्तन एवं जघन युगलशालिनी हे प्रणयिनी राधे! मेरे मन में किसी दूसरी नायिका के लिए अवकाश ही नहीं है। मदन के अतिरिक्त दूसरे किसी के प्रवेश करने का सौभाग्य नहीं है। परिरम्भण के लिए अब मुझे आदेश दो। बालबोधिनी- अब श्रीकृष्ण श्रीराधा से कह रहे हैं क्यों यह शंका अपने मन में व्यर्थ ही पैदा कर ली है। अन्य वनिता-संग का आरोप मुझ पर मत लगाओ। मेरा तो अन्त:स्थल और हृदय तुम्हारे कुच-कलशों एवं जघनों के भार से इस तरह आक्रान्त है कि कहीं दूसरों की स्मृति का अवकाश ही नहीं है। मेरे हृदय में तुम्हारे प्यार ने सम्पूर्ण रूप से व्याप्त होकर आक्रमण कर लिया है, वहाँ दूसरे के लिए किञ्चितमात्र भी स्थान नहीं है। वहाँ कोई कैसे प्रवेश कर सकता है। तुम्हारे रहने से मेरे हृदय में मदन के अतिरिक्त अन्य किसी को प्रवेश करने का सौभाग्य प्राप्त नहीं है। हे प्रणयिनि राधे! अब मान का परित्याग भी करो। अब तुम ऐसा करो कि मैं तुम्हारे स्तनमण्डल का आलिंगन कर सकूँ। अपना किंकर बनाकर मुझे तदर्थ अनुमति दो। प्रस्तुत श्लोक में हरिणी नामक वृत्त तथा काव्यलिंग नामक अलंकार है। श्रीराधा प्रौढ़ नायिका हैं और श्रीकृष्ण प्रगल्भ नायक हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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