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श्रीगीतगोविन्दम् -श्रील जयदेव गोस्वामी
प्रथम सर्ग
सामोद-दामोदर
अथ द्वितीय सन्दर्भ
2. गीतम्
अन्वय - [ध्येयविशेषत्वेन धीरोद्धतत्वमाह द्वाभ्याम्र]-हे कालियविषधरगञ्जन (कालियसर्पदमन) हे जनरञ्जन (जनसन्तोष) हे यदुकुल-नलिन-दिनेश (यदुकुलान्येव नलिनानि तेषां दिनेश: सूर्यइव तत्सम्बुद्धौ) हे देव, हरे जय जय "मात्सर्यवानहप्रारी मायावी रोषणश्चल:। विकत्थनश्च विद्वद्भिर्धीरोद्धत उदाहृत।" अत्र कालियेत्यादिना मात्सर्यवत्त्वं जनरञ्जनेत्यादिना यदुकुलेत्यादिना च अहंकारित्वम् अहन्तया ममच जनरञ्जनादिसिद्धे:] ॥3॥ अनुवाद - हे देव! हे हरे! विषधर कालिय नाम के नाग का मद चूर्ण करने वाले, निजजनों को आह्लादित करने वाले, हे यदुकुलरूप कमल के प्रभाकर! आपकी जय हो! जय हो ॥3॥ |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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