गीत गोविन्द -जयदेव पृ. 74

श्रीगीतगोविन्दम्‌ -श्रील जयदेव गोस्वामी

प्रथम सर्ग
सामोद-दामोदर

अथ द्वितीय सन्दर्भ
2. गीतम्

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कालिय-विषधर-गञ्जन जनरञ्जन!
यदुकुल-नलिन-दिनेश!
य जय देव हरे ॥3॥

अन्वय - [ध्येयविशेषत्वेन धीरोद्धतत्वमाह द्वाभ्याम्र]-हे कालियविषधरगञ्जन (कालियसर्पदमन) हे जनरञ्जन (जनसन्तोष) हे यदुकुल-नलिन-दिनेश (यदुकुलान्येव नलिनानि तेषां दिनेश: सूर्यइव तत्सम्बुद्धौ) हे देव, हरे जय जय "मात्सर्यवानहप्रारी मायावी रोषणश्चल:। विकत्थनश्च विद्वद्भिर्धीरोद्धत उदाहृत।" अत्र कालियेत्यादिना मात्सर्यवत्त्वं जनरञ्जनेत्यादिना यदुकुलेत्यादिना च अहंकारित्वम् अहन्तया ममच जनरञ्जनादिसिद्धे:] ॥3॥

अनुवाद - हे देव! हे हरे! विषधर कालिय नाम के नाग का मद चूर्ण करने वाले, निजजनों को आह्लादित करने वाले, हे यदुकुलरूप कमल के प्रभाकर! आपकी जय हो! जय हो ॥3॥

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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गीत गोविन्द -श्रील जयदेव गोस्वामी
सर्ग नाम पृष्ठ संख्या
प्रस्तावना 2
प्रथम सामोद-दामोदर: 19
द्वितीय अक्लेश केशव: 123
तृतीय मुग्ध मधुसूदन 155
चतुर्थ स्निग्ध-मधुसूदन 184
पंचम सकांक्ष-पुण्डरीकाक्ष: 214
षष्ठ धृष्ठ-वैकुण्ठ: 246
सप्तम नागर-नारायण: 261
अष्टम विलक्ष-लक्ष्मीपति: 324
नवम मुग्ध-मुकुन्द: 348
दशम मुग्ध-माधव: 364
एकादश स्वानन्द-गोविन्द: 397
द्वादश सुप्रीत-पीताम्बर: 461

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