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श्रीगीतगोविन्दम् -श्रील जयदेव गोस्वामी
प्रथम सर्ग
सामोद-दामोदर
अथ द्वितीय सन्दर्भ
2. गीतम्
कलित ललित वनमाल आपने अतिशय मनोहर वनमाला को धारण किया है। विश्व कोषकार कहते हैं
अर्थात पैरपर्यन्त लटकने वाली माला को वनमाला कहते हैं। वनमाला पत्र एवं पुष्पों से बनी हुई होती है। इस प्रकार तीनों विशेषणों से श्रीकृष्ण का नवतारुण्य द्योतित होता है, उनका वेशविन्यास भी प्रकाशित होता है- नवकिशोर नटवर गोपवेश वेणुकर। हरे-हे श्रीकृष्ण! आप सबके चित्त, मन एवं प्राणों को आकर्षित करते हैं, साथ ही सबके मध्य में अपनी लीला चमत्कारिता प्रकट करते हैं। इससे आपका उत्कर्ष उजागर हो रहा है। इस गीति के प्रत्येक पद के अन्त में 'जय जय देव हरे' इस ध्रुव पद की संयोजना है। प्रस्तुत श्लोक में श्रीकृष्ण का धीरललितत्व चित्रत हो रहा है, जैसाकि धीरललित नायक का लक्षण है-विदग्ध, नवतरुण, विशारद, निश्चिन्त एवं प्रेयसीवश्यता। 'ए'-कार का प्रयोग गान की वेला में रागपूर्त्ति के लिए हुआ है ॥1॥ |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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