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श्रीगीतगोविन्दम् -श्रील जयदेव गोस्वामी
प्रथम सर्ग
सामोद-दामोदर
अथ द्वितीय सन्दर्भ
2. गीतम्
अन्वय - [इदानीं परव्योमनाथत्वेन धीरललितत्वमाह-हे श्रितकमलाकुचमण्डल (श्रितं धृतं कमलाया लक्ष्म्या: कुचमण्डलं स्तनयुगलं येन तत्सम्बुद्धौ) अनेन विदग्धत्वपरिहासविशारदत्व- प्रेयसीवशत्वनिश्चिन्तत्वानि सुचितानि] हे धृतकुण्डल (धृते कुण्डले तत्सम्बुद्धौ) हे कलितललितवनमाल (कलिता धृता ललिता सुन्दरी वनमाला येन तत्सम्बुद्धौ); [एतेन विशेषणद्वयेन नवतारुण्यत्वं सूचितम्, तेनैव वेशविन्याससिद्धे:] हे देव, हरे, जय जय (उत्कर्षमाविष्कुरु) ["विदग्धो नव-तारुण्य: परिहास- विशारद:। निश्चिन्तो धीरललित: स्यात्र प्राय: प्रेयसीवश:"] ॥1॥ अनुवाद - हे श्रीराधाजी के स्तन मण्डल का आश्रय लेने वाले! कानों में कुण्डल तथा अतिशय मनोहर वनमाला धारण करने वाले हे हरे! आपकी जय हो॥ अथवा हे देव! हे हरे! हे कमला कुचमण्डल बिहारी! हे कुण्डल भूषण धारि! हे ललित मालाधर! आपकी जय हो ॥1॥ |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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