गीत गोविन्द -जयदेव पृ. 68

श्रीगीतगोविन्दम्‌ -श्रील जयदेव गोस्वामी

प्रथम सर्ग
सामोद-दामोदर

अथ द्वितीय सन्दर्भ
2. गीतम्

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श्रितकमलाकुचमण्डल! धृत कुण्डल!
कलित-ललित-वनमाल!
जय जय देव हरे ॥1॥ ध्रुवम्र॥

अन्वय - [इदानीं परव्योमनाथत्वेन धीरललितत्वमाह-हे श्रितकमलाकुचमण्डल (श्रितं धृतं कमलाया लक्ष्म्या: कुचमण्डलं स्तनयुगलं येन तत्सम्बुद्धौ) अनेन विदग्धत्वपरिहासविशारदत्व- प्रेयसीवशत्वनिश्चिन्तत्वानि सुचितानि] हे धृतकुण्डल (धृते कुण्डले तत्सम्बुद्धौ) हे कलितललितवनमाल (कलिता धृता ललिता सुन्दरी वनमाला येन तत्सम्बुद्धौ); [एतेन विशेषणद्वयेन नवतारुण्यत्वं सूचितम्, तेनैव वेशविन्याससिद्धे:] हे देव, हरे, जय जय (उत्कर्षमाविष्कुरु) ["विदग्धो नव-तारुण्य: परिहास- विशारद:। निश्चिन्तो धीरललित: स्यात्र प्राय: प्रेयसीवश:"] ॥1॥

अनुवाद - हे श्रीराधाजी के स्तन मण्डल का आश्रय लेने वाले! कानों में कुण्डल तथा अतिशय मनोहर वनमाला धारण करने वाले हे हरे! आपकी जय हो॥

अथवा हे देव! हे हरे! हे कमला कुचमण्डल बिहारी! हे कुण्डल भूषण धारि! हे ललित मालाधर! आपकी जय हो ॥1॥

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

गीत गोविन्द -श्रील जयदेव गोस्वामी
सर्ग नाम पृष्ठ संख्या
प्रस्तावना 2
प्रथम सामोद-दामोदर: 19
द्वितीय अक्लेश केशव: 123
तृतीय मुग्ध मधुसूदन 155
चतुर्थ स्निग्ध-मधुसूदन 184
पंचम सकांक्ष-पुण्डरीकाक्ष: 214
षष्ठ धृष्ठ-वैकुण्ठ: 246
सप्तम नागर-नारायण: 261
अष्टम विलक्ष-लक्ष्मीपति: 324
नवम मुग्ध-मुकुन्द: 348
दशम मुग्ध-माधव: 364
एकादश स्वानन्द-गोविन्द: 397
द्वादश सुप्रीत-पीताम्बर: 461

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