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श्रीगीतगोविन्दम् -श्रील जयदेव गोस्वामी
प्रथम सर्ग
सामोद-दामोदर
अथ द्वितीय सन्दर्भ
2. गीतम्
अनुवाद - गुर्ज्जरी राग तथा नि:सार ताल से यह द्वितीय प्रबन्ध गाया जाता है। गुर्ज्जरी राग - श्यामा नायिका के समान जो शीतकाल में उष्ण और ग्रीष्मकाल में सुशीतल होती है, जिसके स्तन युगल सम्यक् रूपेण कठोर हैं, जिसके पद स्पर्श मात्र से अशोक वृक्ष में असमय ही पुष्प प्रस्फुटित हो जाते हैं, जो मनोहर केशों को धारण करने वाली, मलय तरुवर की कोमल पल्लवों द्वारा सुसज्जित शय्या में पहुँचती हैं, श्रुति के दाहिनी ओर से स्वरों को धारण करती है। इसमें नि:सार ताल जैसे दो ताल द्रुत और दो ताल लघु होते हैं। इसको गुर्ज्जरी राग कहा जाता है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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