गीत गोविन्द -जयदेव पृ. 65

श्रीगीतगोविन्दम्‌ -श्रील जयदेव गोस्वामी

प्रथम सर्ग
सामोद-दामोदर

अथ द्वितीय सन्दर्भ
2. गीतम्

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गुर्ज्जरी राग नि:सार तालाभ्यां गीयते


अनुवाद - गुर्ज्जरी राग तथा नि:सार ताल से यह द्वितीय प्रबन्ध गाया जाता है।

गुर्ज्जरी राग - श्यामा नायिका के समान जो शीतकाल में उष्ण और ग्रीष्मकाल में सुशीतल होती है, जिसके स्तन युगल सम्यक् रूपेण कठोर हैं, जिसके पद स्पर्श मात्र से अशोक वृक्ष में असमय ही पुष्प प्रस्फुटित हो जाते हैं, जो मनोहर केशों को धारण करने वाली, मलय तरुवर की कोमल पल्लवों द्वारा सुसज्जित शय्या में पहुँचती हैं, श्रुति के दाहिनी ओर से स्वरों को धारण करती है। इसमें नि:सार ताल जैसे दो ताल द्रुत और दो ताल लघु होते हैं। इसको गुर्ज्जरी राग कहा जाता है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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गीत गोविन्द -श्रील जयदेव गोस्वामी
सर्ग नाम पृष्ठ संख्या
प्रस्तावना 2
प्रथम सामोद-दामोदर: 19
द्वितीय अक्लेश केशव: 123
तृतीय मुग्ध मधुसूदन 155
चतुर्थ स्निग्ध-मधुसूदन 184
पंचम सकांक्ष-पुण्डरीकाक्ष: 214
षष्ठ धृष्ठ-वैकुण्ठ: 246
सप्तम नागर-नारायण: 261
अष्टम विलक्ष-लक्ष्मीपति: 324
नवम मुग्ध-मुकुन्द: 348
दशम मुग्ध-माधव: 364
एकादश स्वानन्द-गोविन्द: 397
द्वादश सुप्रीत-पीताम्बर: 461

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